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एक साथ ही मां-बाप की हुई मौत, बेटियों ने अर्थी को खुद कंधे पर उठाया और चिता में लगाई आग

ऐसा कहा जाता है कि पति-पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का रिश्ता होता है। जब दो लोग साथ जुड़ते हैं तब दो अलग-अलग जीवन धीरे-धीरे एक होने लगते हैं और यह अपने बारे में नहीं सोचते बल्कि एक-दूसरे के लिए ही सोचते और जीते हैं। पति-पत्नी का रिश्ता एक ऐसा होता है, जिसमें कोई भी काम अपने साथी की खुशी को ध्यान में रखकर करना होता है। शादी के सात फेरों के साथ ही पति-पत्नी एक दूसरे का जीवन भर साथ निभाने का वचन देते हैं।

पति-पत्नी ही एक दूसरे के अच्छे और बुरे समय के साथ ही होते हैं। लेकिन अगर किसी कारण से पति-पत्नी में से कोई एक इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है तो उसके साथी पर क्या बीतती है, यह सिर्फ वही समझ सकता है। इसी बीच राजस्थान के नागौर जिले की पंचायत समिति मुंडवा के गांव रुण से एक बेहद भावुक कर देने वाला मामला सामने आया है।

दरअसल, यहां पर पति-पत्नी एक साथ दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, जिसकी चर्चा इलाके में सभी लोग कर रहे हैं। अग्नि को साक्षी मानकर जीवन भर जीने मरने की शपथ लेने वाले पति-पत्नी एक ही दिन इस दुनिया को भी छोड़ कर चले गए। इन दोनों की अर्थी को इनकी दोनों बेटियों ने कंधा दिया और एक ही चिता पर बेटियों ने अंतिम संस्कार में मुखाग्नि दी। जो भी इस मामले को जान रहा है, वह बेहद भावुक हो जा रहा है।

श्वास से संबंधित थी बीमारी

आपको बता दें कि गांव रूण के बाबूलाल, रामबक्ष सेन, रामेश्वर गोलिया , दीपचंद सोनी का ऐसा बताना है कि 78 साल के राणाराम सेन को श्वास से संबंधित बीमारी थी, जिसकी वजह से उनको पहले नागौर और बाद में जोधपुर अस्पताल ले जाया गया था। उनका बताना है कि राणाराम सेन गांव रूण के शनि मंदिर में पूजा पाठ करते रहते थे।

5 घंटे के इलाज के बाद हो गया उनका निधन

जब 78 वर्षीय राणाराम सेन का अस्पताल में इलाज चला तो 5 घंटे के इलाज के बाद भी उनको बचाया न जा सका। उनका निधन रविवार की सुबह 4:00 बजे हो गया। जिसके बाद 8:00 बजे गांव रूण में उनके घर पर उनके मृत शरीर को लाया गया। जहां पर उनकी 75 वर्षीय पत्नी भंवरी देवी भी थीं। जैसे ही उन्होंने अपने पति का शव देखा तो उन्होंने भी वहीं पर अपना दम तोड़ दिया।

गाजे-बाजे के साथ निकाली गई दोनों की अंतिम यात्रा

बुजुर्ग दंपति के परिजनों रतनलाल और खेमचंद सेन का ऐसा बताना है कि रविवार को ही इनको गाजे-बाजे के साथ मोक्ष धाम ले जाया गया। बैंड बाजे के साथ जब दोनों की अंतिम यात्रा निकाली गई तो उसमें पूरा गांव शामिल हुआ था।

रतनलाल और खेमचंद का ऐसा बताना है कि बुजुर्ग दंपति का कोई बेटा नहीं है। केवल दो बेटियां हैं। दोनों शादीशुदा हैं। इसकी वजह से दोनों बेटियों ने ही अर्थी को कंधा दिया और एक ही चिता पर माता-पिता को उन्होंने मुखाग्नि दी।

ग्रामीण फखरुद्दीन , राजेंद्र सरवा और बाबा नूर मोहम्मद का ऐसा बताना है कि एक बुजुर्ग दंपति की ऐसी अमर प्रेम कहानी का उदाहरण, जिसे लोग वर्षों तक याद रखेंगे। उन्होंने बताया कि लोगों को यह याद रहेगा कि जिस आंगन में पति-पत्नी एक साथ कदम रखते जीवन सफर की नई डगर पर चले थे, वहां जीवन की समाप्ति पर भी एक साथ अर्थी पर निकले और दोनों की चिता को एक साथ मुखाग्नि भी दी गई।

हर किसी को नहीं होता है नसीब

आपको बता दें कि पंडित रामकिशोर दाधीच का ऐसा बताना है कि शनि मंदिर की सेवा करते हुए और अमावस्या के दिन मलमास में एक साथ यह दुनिया को अलविदा कहना हर किसी को नसीब नहीं होता है। हिंदू संस्कृति में यह दिन बहुत ही उत्तम होता है। वहीं पति-पत्नी की एक साथ अर्थी उठने से ग्रामीणों में भी शौक नजर आया है। यह बुजुर्ग दंपत्ति हमेशा एक साथ रहते थे और अब एक साथ ही दुनिया को छोड़ दिया, जिसकी चर्चा पूरे गांव में हो रही है।

चौमूं के देवथला के ब्राह्मण मोहल्ले में भी सामने आया था ऐसा मामला

हालांकि यह पहला मामला नहीं है बल्कि बीते सप्ताह ही जयपुर के पास चौमू के देवथला के ब्राह्मण मोहल्ले से भी कुछ ऐसा ही मामला देखने को मिला था। दरअसल, यहां पर 85 साल के सीताराम शर्मा की मृत्यु तबीयत खराब होने की वजह से हो गई थी। वहीं पति के निधन के सदमे में महज 20 मिनट के बाद ही पत्नी भंवरी देवी (83) ने भी अपने प्राण त्याग दिए।

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