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दुश्मनी भुला भारत ने दिया चीन का साथ, संयुक्त राष्ट्र संघ में पड़ोसी मुल्क को बचाया फजीहत से

भारत अपने पड़ोसी देशों और अंतराष्ट्रीय मसलों पर किसी भी एक गुट में शामिल होने से बचता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब भी ऐसा मौका आया तो भारत तठस्थ होकर फैसले लेता है, कई बार भारत ने फैसलों से अंतराष्ट्रीय समुदाय को चौंकाया भी है। ऐसा ही एक बार फिर हुआ जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन के खिलाफ लाए प्रस्ताव पर उसे भारत का साथ मिला (India helps China) है । दरअसल, ये प्रस्ताव उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार पर मंथन के लिए लाया गया था, पर ये प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, क्योंकि भारत ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट नहीं किया।

चीन के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर भारत ने नहीं की वोटिंग

चीन के उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर आए इस प्रस्ताव पर वोटिंग में 19 देशों ने इसके खिलाफ वोटिंग की। ऐसे में इस प्रस्ताव को पास करने के लिए जरूरी वोट और समर्थन नहीं मिला। जिससे चीन को सीधा फायदा पहुंचा। साथ ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उइगर मुस्लिमों को लेकर चीन को घेरने की कोशिश नाकाम हो गई। जिससे अमेरिका और पश्चिमी देशों की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। संयुक्त राष्ट्र परिषद में 47 सदस्य हैं, जिनमें भारत और यूक्रेन समेत 11 देश मतदान के समय मौजूद नहीं रहे, जिससे चीन की परोक्ष तौर पर मदद (India helps China) मिल गई।

चीन के खिलाफ प्रस्ताव लाने वाले देशों में यूरोप के ज्यादातर देश शामिल थे। जिसमें कनाडा, डेनमार्क,कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड आइसलैंड, स्वीडन, यूके और अमेरिका शामिल थे। जबकि चीन, पाकिस्तान नेपाल जैसे एशियाई और दूसरे देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला। वहीं भारत, ब्राजील, मेक्सिको, यूक्रेन और आठ अन्य देशों ने इस वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया। इस दौरान कतर, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान ने चीन को अलग-थलग करने के जोखिम का हवाला दिया। जिसके बाद प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।

16 साल के इतिहास में दूसरी बार खारिज हुआ कोई प्रस्ताव

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के बीते 16 साल के इतिहास में ये दूसरी बार मौका आया है, जब किसी प्रस्ताव को खारिज किया गया है। प्रस्ताव के गिरने के बाद ये माना जा रहा है, कि जवाबदेही, मानवाधिकारों पर पश्चिम के नैतिक अधिकार और इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर प्रहार के रूप में देखा जा रहा है। विश्व उइगर कांग्रेस के अध्यक्ष डोलकुन ईसा ने प्रस्ताव गिरने पर निराशा जताई है। दरअसल डोलकुन ईसा की मां चीन के ऐसी ही उइगरों के एक शिविर में मर गई थी जबकि उनके दो भाई लापता हैं। डोलकुन ईशा ने प्रस्ताव गिरने पर कहा कि, ‘हम इससे हार नहीं मानेंगे, हालंकि मुस्लिम देशों की जो प्रतिक्रिया सामने आई है, उससे हम निराश हैं’।

प्रस्ताव के खारिज होने से विकसित देशों को लगा झटका

इस प्रस्ताव के खारिज होने से विकसित देशों को झटका लगा है। साथ ही कई सामाजिक कार्यकर्ता और संगठन नाराज हैं। क्योंकि जो लोग सालों से चीन में इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे उन्हें बड़ा झटका लगा है।

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