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कोरोना संकट में देवदूत बने भरत राघव, बेनाम लाशों का सम्मानजनक करते हैं अंतिम संस्कार

कोरोना वायरस की वजह से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर काफी खतरनाक साबित हुई है। रोजाना ही कोरोना वायरस की चपेट में हजारों-लाखों लोग आ रहे हैं। कोरोना मरीजों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। अस्पतालों में बेड की कमी हो गई है इतना ही नहीं बल्कि ऑक्सीजन की भी बहुत ज्यादा कमी है, जिसके कारण बहुत से मरीज अपनी जान गंवा बैठे हैं।

कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों का आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ रहा है। लोगों के अंदर काफी डर बना हुआ है। लोग अपने घरों में बंद रह कर खुद को सुरक्षित कर रहे हैं। बहुत से मामले ऐसे भी सामने आ रहे हैं जिसमें कोरोना पीड़ित परिवार के लोगों की मदद के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा है। लोग संक्रमित का शव ले जाने में परिवार वालों की मदद नहीं कर रहे हैं परंतु ऐसा नहीं है कि सभी लोग जरूरतमंदों की मदद से पीछे हट रहे बल्कि भरत राघव जैसे युवा संकट की घड़ी में लोगों की मदद के लिए सामने आए हैं।

आपको बता दें कि कोरोना महामारी के बीच राजामहेंद्रवरम के रहने वाले भरत राघव देवदूत बनकर सामने आए हैं। कोरोना महामारी का संकट पूरे देश पर मंडरा रहा है। आंध्र प्रदेश में भी वायरस ने अपना पैर पसार दिया है। यहां कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि लोगों की मृत्यु दर भी लगातार बढ़ रही है।

कोरोना महामारी ने कई परिवार के सदस्यों को छीन लिया है और उनके शवों का अंतिम संस्कार के लिए शमशान तक ले जाने के लिए कोई भी एंबुलेंस उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं बल्कि कोई भी उनकी मदद के लिए सामने नहीं आ रहा है। ऐसे में शवों का अंतिम संस्कार करना एक बड़ी समस्या बन चुकी है। ऐसे में भरत राघव ने ये जिम्मेदारी उठायी है। वह कोरोना वायरस के कारण मरने वाले लोगों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार करते हैं।

बता दें कि भरत राघव की उम्र 27 वर्ष की है और यह एमबी होल्डर हैं। यह अपने दोस्तों के साथ मिलकर अभी तक 110 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। भरत अंतिम संस्कार का खुद सारा इंतजाम करते हैं और जो भी उसमें खर्च होता है, वह अपनी जेब से भरते हैं। आपको बता दें कि जब भरत पढ़ रहे थे तब उस दौरान उनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी। उस समय उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी। उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह अपने पिताजी का शव विशाखापट्टनम से राजमहेन्द्रवरम ला सके, जिसके कारण एक दिन शव के अंतिम संस्कार में देरी हो गई थी।

लावारिस की तरह उनके पिताजी की लाश पड़ी रही। इस घटना ने भरत की आत्मा को झकझोर दिया और उसके बाद उन्होंने यह फैसला कर लिया कि जो परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है वह उनकी अंतिम संस्कार में सहायता करेंगे। इसके अलावा अगर किसी का कोई नहीं है तो ऐसे शवों को वह शमशान ले जाएंगे। बता दें भरत राघव शवों का अंतिम संस्कार सम्मान सहित पूरा करते हैं और वह इसको अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। वह शवों को श्मशान तक पहुंचाने के लिए वाहन, पीपीई किट्स और अंतिम संस्कार पर होने वाला खर्चा खुद वहन करते हैं।

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