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जानिये ज्वाला मंदिर के रहस्य, मां सती की जिह्वा से उत्पन्न हुआ है यह शक्तिपीठ

नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नौ दिनों तक मां के अलग-अलग रूपों का पूजन होता है। मान्यता है कि मां की पूजा सच्चे मन से करने से मनचाही चीज मां आपको दे देती हैैं। नवरात्रि में लोग पूजा पाठ करते हैं और मां को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखा करते हैं। इतना ही नहीं काफी संख्या में लोग मां के प्रसिद्ध मंदिरों में जाकर इनकी पूजा किया करते हैं।

देश में मां के कई सारे शक्तिपीठ मौजूद हैं, जहां पर नवरात्रि के दौरान मां की विशेष पूजा की जाती है। इन्हीं शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ का नाम ज्वाला देवी मंदिर। ज्वाला देवी मंदिर प्रमुख 9 शक्तिपीठों में से एक हैं।

इस तरह से हुआ शक्तिपीठ का निर्माण

कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने कनखल यानी हरिद्वार में ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था। लेकिन इन्होंने जान-बूझकर अपनी बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया। सती को लगा कि शायद उनके पिता उन्हें निमंत्रण देना भूल गए हैं। इसलिए सती बिना निमंत्रण के ही यज्ञ में शामिल होने चले गई। लेकिन दक्ष प्रजापति ने यज्ञ के दौरान भगवान शिव का अपमान किया। जिसके कारण सती को गुस्सा आ गया और सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।

भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकालकर उसे कंधे पर उठा लिया और दिव्य नृत्य करने लगे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर माता सती के शरीर को कई हिस्सों में काटा दिया। पुराणों के अनुसार जहां-जहां माता सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वो स्थान शक्तिपीठ बन गए।

हर समय जलती रहती हैं ज्वालाएं

हिमाचल प्रदेश के ज्वाला देवी मंदिर में 24 घंटे ज्वाला जली रहती है और लोग इनकी पूजा करते हैं। इस मंदिर में कुल नौ ज्वालाएं हैं, जिनमें से एक प्रमुख है। मान्यता है कि सदियों से ये ज्वालाएं ऐसे ही जली आ रही है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार इस जगह पर मां सती की जिह्वा (जीभ) गिरी थी, इसलिए इसका नाम ज्वाला देवी मंदिर रखा गया। इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है। बल्कि मंदिर के गर्भगृह से निकल रही ज्वाला को माता के रुप में पूजा जाता है। इस कारण से ये मंदिर प्रमुख 9 शक्तिपीठों में शामिल है।

ज्वाला देवी मंदिर को जोतावाली का मंदिर और नगरकोट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। नवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में खासा भीड़ देखने को मिलती है और भक्त लोग मंदिर में आकर नौ ज्वालाओं के दर्शन करते हैं। हैरानी की बात ये की ये ज्वालाए बिना तेल, घी या गैस के जल रही है। कई सारे वैज्ञानिकों ने इन ज्वालाओं के जलन की वजह पाता करनी चाही। लेकिन किसी को भी कामयाबी नहीं मिली।

ये ज्वालाएं सदियों से बिना तेल बाती के जल रही है। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी नाम दिया गया है। वहीं नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता जो चांदी के दीपक के बीच स्थित है वो महाकाली है।

कहां पर है स्थित

हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले में ज्वाला देवी मंदिर स्थित है। कांगड़ा जिला पहुंचकर आपको आसानी से मंदिर जाने के लिए बस या टैक्सी मिल जाएगा। साथ में ही मंदिर के पास कई सारे होटल भी मौजूद हैं। जहां पर आप रुक सकते हैं।

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