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इंदिरा गांधी ने भुला दिया था अपनी बेटी से किया वादा, आज भी गरीबी में कर रही है जीवन बसर

आज से करीब 37 साल पहले लखनऊ के कुशीनगर में एक गांव नारायणपुर में एक महिला की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। इस मामले पर इतना बड़ा बवाल हुआ था कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार ही गिर गई। जिसके बाद देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी गांव में मृतिका के परिवार से मिलने पहुंची। खबर थी कि इंदिरा गांधी ने मृतिका की बेटी को गोद में उठाकर कहा था कि वो आज से उनकी बेटी है। हालांकि जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी उसके बाद इंदिरा गांधी ने उस गांव की तरफ दोबारा रुख नहीं किया। जिसके बाद से ही स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा गोद ली गई सोनकलिया व जयप्रकाश की जिंदगी से गरीबी और लाचारी  का रंग कभी नहीं उतरा। वह अनाथ के अनाथ ही रह गए। स्व.इंदिरा गांधी की बेटी सोनकेशिया आज भी एक जर्जर खपरैल में गरीबी में जी रही है।

पिता की पहले ही हो चुकी थी मौत, मां भी छोड़ कर जा चुकी थी

आपको बता दें कि 1980 में उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का शासन था। उस वक्त मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री बनारसी दास थे। कप्तानगंज थाने के नारायणपुर गांव में अपने पोते जयप्रकाश व पौत्री सोनकेशिया के साथ रह रही बुजुर्ग महिला बसकाली को एक बस ने कुचल दिया और उसकी दर्दनाक मौत हो गई। जिसके बाद दोनों बच्चे अनाथ हो गए।

बता दे कि इनके पिता की मौत हो चुकी थी और मां इन्हें अपने हाल पर छोड़कर चली गई थी। बसकाली की मौत के बाद गांव के लोगो ने मुआवजे की मांग को लेकर हाटा- कप्तानगंज मार्ग को जाम कर दिया। लाठीचार्ज के बाद गांव में पीएसी तैनात कर दी गई। लेकिन इसके अगले ही दिन पीएसी और पुलिस पर गांव के लोगों के साथ दुर्व्यवहार और वहां की महिलाओं के साथ बलात्कार करने के आरोप लगे। जिसके बाद यह मामला बहुत बढ़ गया। यहां तक की मुख्यमंत्री बनारसी दास को भी बर्खास्त कर दिया गया।

स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने नहीं निभाया अपना वादा

 नारायणपुर कांड को मुद्दा बनाकर कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना ली। आपको बता दें कि सरकार बनने से पहले 7 जुलाई 1980 को गांव में आई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अनाथ हो चुके जयप्रकाश व सोनकेशिया को गोद लेने की घोषणा करते हुए कहा था कि अब दोनों बच्चे मेरे साथ दिल्ली में रहेंगे और इनकी पढ़ाई व भरण- पोषण का सारा खर्च वह स्वयं उठाएंगी। इस घोषणा के बाद खूब तालियां बजी थी। लेकिन इसके बाद स्व.इंदिरा गांधी दिल्ली जाकर राजनीति में व्यस्त हो गई और स्थानीय कांग्रेसी नेता भी फोटो खिचवाने के बाद इन बच्चों को भूल गए। जिसकी वजह से दोनों बच्चे अनाथ के अनाथ ही रह गए। स्वर्गीय इंदिरा गांधी के अपने वादे को भूल जाने के बाद से दोनों बच्चों ने किसी तरह भीख मांग कर अपना जीवन बिताया।

भीख मांग कर जीवन काट रहे जयप्रकाश की मौत एक दिन पोखरे में डूबने से हो गई और फिर सोनकेशिया अकेली रह गई। बहरहाल भीख मांगते- मांगते सोनकेशिया बड़ी हुई गांव के लोगों ने उनकी शादी करा दी। करीब 43 वर्ष की हो चुकी स्व. इंदिरा गांधी की गोद ली हुई यह बेटी नारायणपुर गांव में ही जर्रजर खपरैल की मकान में दयनीय हालत में रह रही है। उनका कहना है कि नेताओं को ग्रामीण लोगों के साथ वादे करके इस तरीके से उन्हें भूलना नहीं चाहिए।

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