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वो इंजीनियर जिसने ई-रिक्शा को हर शहर तक पहुंचाया, खुद सड़को पर उतर कम किया रिक्शे वालों का दर्द

आज ई-रिक्शा आपको देश के बड़े शहर से लेकर छोटे कस्बों के गली मुहल्ले में देखने को मिल जाएंगे। सरपट सड़को पर दौड़ते ये ई-रिक्शा न सिर्फ दूरियों को कम करते हैं बल्कि किफायती दाम पर लोगों को उनके मंजिल तक पहुंचा देते हैं। इससे पर्यावरण से लेकर देश की आम जनता और रिक्शा चालकों, सभी को लाभ मिला है। लेकिन क्या आप उस शख्स को जानते हैं कि जिसकी बदौलत आज ई-रिक्शा देश के कोने-कोने (E-Rickshaw in India) तक पहुंच पाया है? शायद नहीं जानते होंगे इसलिए आज हम आपको इस शख्स से मिलवाने जा रहे हैं और साथ ही उसकी जर्नी के बारे में भी बताएंगे कैसे उसने ये सब संभव किया है।

तो सबसे पहले आपको बता दें कि उस शख्स का नाम है विजय कपूर (Vijay Kapoor)। दरअसल, IIT-कानपुर से इंजीनियरिंग कर चुके विजय कपूर को ई-रिक्शा को देश में लाने का विचार रिक्शाचालकों के कठीन जीवन को देखकर मिला। बताया जाता है साल 2010 की एक गर्मी के दिन में जब विजय कपूर खुद दिल्ली के चांदनी चौक की पार्किंग से बाज़ार जाने के लिए एक रिक्शा लिया। तो उस रिक्शे की सवारी ने विजय कपूर को एहसास दिलाया कि रिक्शे पर बिठाकर एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का भार खींचना कितने मेहनत का काम है। वहीं मौसम और गर्मी की मार दूसरी तरफ, लेकिन इतना सब होने के बाद भी लोग अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए में रिक्शा चलाने का काम करते हैं।

रिक्शा चालकों के अनुभव से मिला ई-रिक्शा बनाने का आईडिया

इस तरह से रिक्शे की एक छोटी सी सवारी ने विजय कपूर (Vijay Kapoor को रिक्शा चलाने वाले लोगों के दर्द से रूबरू कराया। ऐसे में यहीं से विजय कपूर ने ये ठाना कि वो देश की सड़को पर रिक्शा चलाने वाले लोगों के लिए कुछ करेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो विजय कपूर को यहीं से एक ऐसा वाहन बनाने का विचार आया जो ईको-फ़्रेंडली हो और साथ ही जिसे चलाने में मेहनत भी कम लगती हो। ऐसे में विजय कपूर ने Saera Electric Auto Private Limited की स्थापना की, जिसके निर्मित मयूरी ई-रिक्शा साल 2012 में पहली बार देश की सड़कों (E-Rickshaw in India) पर दौड़े।

विजय कपूर को ई-रिक्शा की मैन्युफ़ैक्चरिंग में लग गए डेढ़ साल

बता दें कि इससे पहले डॉ. अनिल कुमार राजवंशी ने 2000 में निम्बकर एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट में काम करते हुए देश का पहला ई-रिक्शा बनाया था। इसके लिए उन्हे साल 2022 में पद्म श्री मिला । पर अनिल राजवंशी ने सिर्फ ई-रिक्शा का निर्माण किया था उसे देश के हर छोटे बड़े शहर तक सुलभ नहीं कराया। ये काम तो विजय कपूर ने ही किया। हालांकि विजय कपूर के लिए ई-रिक्शा की मैन्युफ़ैक्चरिंग इतनी आसान भी नहीं रही। उन्हें इसका सिंपल मॉडल बनाने में भी तकरीबन डेढ़ साल लग गया। दरअसल, उस वक्त देश में ई-रिक्शा की बैट्री नहीं मिलती थी। ऐसे में उन्होंने एक थर्ड पार्टी वेंडर से बैट्री खरीदकर वाहन में लगाना शुरू किए।

प्रचार के लिए अपनी पोती को ई-रिक्शे में बिठाकर स्कूल छोड़ते थे

इस तरह से ई-रिक्शा का निर्माण तो होने लगा पर अब बारी थी उसे बेचने की जो कि उससे भी कठीन काम था। क्योंकि इस वक्त में रिक्शा चालक या कोई भी व्यक्ति उसे खरीदने को तैयार नहीं था। ऐसे में बताया जाता है कि अपने ई-रिक्शा का एडवर्टाइज़ करने के लिए विजय कपूर खुद अपनी पोती को ई-रिक्शे में बैठाकर स्कूल छोड़ने जाते थे। इसके 8 महीने बाद एक बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे के लिए एक ई-रिक्शे को आधे दाम पर खरीदा। हालांकि जब उसे ई-रिक्शे की सवारी पसंद आने लगी तो उसी महिला ने आगे चलकर 6 ई-रिक्शा खरीदे। इस तरह से एक दो ग्राहकों से ही सही लेकिन विजय कपूर के बनाए ई-रिक्शे को धीरे धीरे लोकप्रियता मिलने लगी।

जब मिली देश में ई-रिक्शा के उत्पादन और चालन की हरी झंडी

इसके बाद साल 2012 में यूपी के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने मयूरी ई-रिक्शा को हरी झंडी दिखाई। वहीं साल 2014 में विजय कपूर ने राजस्थान में भी ई-रिक्शा की बड़ी मैन्युफ़ैक्चरिंग यूनिट शुरू की। हालांकि तभी तक देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के चालन के लिए कोई सरकारी नियम नहीं थे, पर बाद में भारत सरकार ने एक कमिटी बनाई जिसके प्रमुख थे ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी। नितिन गडकरी के निर्देशन में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए नियम-कानून बनाए गए और बता दें कि उस वक्त ICAT (International Centre for Automative Technology) द्वारा मान्यता पाने वाली भारत की पहली थी मयूरी ई-रिक्शा।

गौरतलब है कि आज विजय कपूर की कंपनी Saera Electric Auto Private Limited हर रोज लभगग 300 ई-रिक्शा (E-Rickshaw in India) तक बना रही है।

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