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जानिए किस दिन मनाई जाएगी होली? होलिका दहन का रहेगा ये शुभ मुहूर्त

होली का त्यौहार भारत का प्रसिद्ध त्योहार है। होली एक ऐसा रंग-बिरंगा त्यौहार है, जिसे हर धर्म के लोग बड़े उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। होली के दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर गले लगते हैं और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। होली का त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से लोग होली मनाते हैं।

मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवे दिन रंग पंचमी मनाई जाती है। यह मुख्य होली से भी अधिक जोरों-शोरों से मनाई जाती है। वहीं अगर हम ब्रज क्षेत्र की होली की बात करें तो यह पूरे भारत भर में मशहूर है। आप सभी लोगों ने बरसाना की लट्ठमार होली के बारे में सुना ही होगा। यहां की होली को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

वहीं होली वाले दिन हरियाणा में देवर अपनी भाभी को खूब सताता है। छत्तीसगढ़ में इस दिन लोक गीतों का प्रचलन है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली बहुत बड़ा पर्व होता है। वहीं अगर महाराष्ट्र की बात करें तो रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से यहां होली खेली जाती है।

इस दिन खेली जाएगी होली

इस बार होली 18 मार्च 2022 को खेली जाएगी। बता दें 10 मार्च से होलाष्टक लग जाएगा। इस दौरान किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। माना जाता है कि होलाष्टक के दौरान अगर कोई व्यक्ति मांगलिक कार्य करता है तो उसे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

जानिए होली का दहन का शुभ मुहूर्त

आपको बता दें कि होली के एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन को कई स्थानों पर छोटी होली भी कहा जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन की तिथि 17 मार्च 2022, गुरुवार है। अगर हम होलिका दहन के शुभ मुहूर्त की बात करें तो यह रात 9:20 बजे से लेकर देर रात 10:31 बजे तक रहेगा यानी कि होलिका दहन का समय बहुत कम है।

जानिए होलिका दहन की विधि

होलिका दहन वाले दिन पेड़ की शाखाएं इकट्ठे करके उन सभी को जमीन पर गाड़ दिया जाता है और उसके चारों तरफ लकड़ी कंडे या उपले रखकर पूरी तरह से ढक दिया जाता है। शुभ मुहूर्त में इन सारी चीजों को जलाने की परंपरा है। होलिका दहन में छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां और उबटन डाली जाती है।

ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को वर्ष भर आरोग्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं बल्कि व्यक्ति के ऊपर से सारी बुरी बलाएं भी खत्म हो जाती हैं। होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उसका तिलक भी लगाया जाता है।

होली से जुड़ी हुई पौराणिक कथा

होली से जुड़ी हुई कई कथाएं प्रचलित हैं। इसके पीछे एक बहुत ही लोकप्रिय पौराणिक कथा है। पुराणों में हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास बताई गई है। अगर हम पुराणों के अनुसार देखें तो भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे। जबकि प्रह्लाद भगवान विष्णु जी के परम भक्त थे।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को भगवान विष्णु जी की भक्ति करने से रोका लेकिन वह नहीं माने। ऐसी स्थिति में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका से मदद मांगी थी। होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था।

होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई और वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर चिता में जाकर बैठ गई लेकिन भगवान विष्णु जी की कृपा से प्रह्लाद कोई नुकसान नहीं हुआ और होलिका अग्नि में जल गई। यह कथा हमें इस बात की तरफ संकेत कराती है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है।

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