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मिसाल! बचपन में चल बसी मां, परेशानियों से नहीं मानी हार, 17 साल से बस कंडक्टरी कर रही हैं सरोज

संसार में हर किसी व्यक्ति का जीवन बेहद संघर्षपूर्ण है। हर किसी मनुष्य को अपने जीवन काल में बहुत सी उतार-चढ़ाव भरी परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन के कठिन दौर का सामना हिम्मत से करें तो जल्द ही परेशानी दूर हो जाती है परंतु जो लोग अपने जीवन की कठिनाइयों के आगे हार मान जाते हैं, उनका जीवन बहुत कष्टकारी हो जाता है।

आज हम आपको एक ऐसी जीती जागती मिसाल के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानकर आप भी तारीफ करेंगे। दरअसल, हम आपको महिला बस कंडक्टर सरोज राय के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने संघर्षों का डटकर सामना किया और आज यह अपनी सभी प्रकार की जिम्मेदारियां निभा रहीं हैं और उन्होंने हर किसी के लिए नई मिसाल पेश की है।

2 साल की उम्र में चल बसी मां

आपको बता दें कि सरोज राय मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले की पहली महिला बस कंडक्टर हैं। जिन्होंने अपनी परेशानियों से हार ना मानते हुए 17 सालों तक इस काम को जिम्मेदारी के साथ निभाया। सरोज की उम्र जब 2 साल की थी तब उसकी मां इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। बचपन में ही मां का साया सर से उठ गया। मां के जाने के बाद इन्होंने अपना बचपन मां के बिना गुजारा।

पिता ने करवाया बाल विवाह

पिता ने 16 साल की उम्र में बाल विवाह करा दिया था। शादी के बाद सभी लड़की की बहुत सी उम्मीदें होती हैं। वैसी ही उम्मीद सरोज को भी थी लेकिन शायद इनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। इनका पति शराब पीता था, जिसके कारण सरोज के अरमान चकनाचूर हो गए। शराबी पति की हरकतों से सरोज बेहद परेशान रहा करती थीं। आखिर में तंग आकर सरोज अपने पति को छोड़कर मायके आ गईं। जब सरोज अपने पति का साथ छोड़कर अलग हो गई तो अपनी जिंदगी बिताने के लिए उनको कोई ना कोई काम धंधा जरूर करना था, जो कि एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई थी परंतु इस कठिन परिस्थिति में भी सरोज ने अपनी हिम्मत नहीं हारी। सरोज ने यह ठान लिया था कि वह सभी चुनौतियों का सामना करेंगी।

सरोज ने मुश्किलों में नहीं मानी हार

बता दें उस समय के दौरान समाज महिलाओं को उस तरह की आजादी नहीं देता था जैसे आजकल नजर आती है। परंतु सरोज ने समाज की बिल्कुल भी परवाह नहीं की और अपनी जिंदगी बिताने के लिए बस स्टैंड पर अंडे की दुकान लगाने लगी लेकिन शायद इनकी किस्मत ही खराब थी। सरोज ने खूब मेहनत की परंतु इनके अंडे की दुकान नहीं चल पाई थी। बाद में सरोज ने यह फैसला लिया कि वह बसों में बुकिंग एजेंट का काम करेंगीं।

शुरुआत में सरोज को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन धीरे-धीरे सरोज अपने काम को बखूबी अंजाम देने लगी थीं। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और अब करीब 17 साल का वक्त सरोज को बस में कंडक्टर की करते हुए गुजर गया है। सरोज कंडक्टर की नौकरी करके रोजाना ₹300 से ₹400 कमा लेती हैं। जिससे इनके परिवार का गुजारा चलता है। समाज की सभी महिलाओं के लिए सरोज एक मिसाल हैं। आपको बता दें कि सरोज को कंडक्टरी करते हुए 17 साल हो गए परंतु अभी भी सरकार की तरफ से उनको किसी भी प्रकार की सहायता प्राप्त नहीं हुई है। जो सरकार के महिला सशक्तिकरण के दावों और वादों की पोल खोलती है। सालों से सरोज अपने दम पर ही काम कर रही हैं।

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