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प्रेगनेंसी में भी मरीजों की सेवा करती रहीं डॉ. प्रतीक्षा, हुआ कोरोना तो बच्चे के बाद खुद तोड़ा दम

डॉक्टरों को अगर भगवान का दर्जा दिया जाए तो यह गलत नहीं होगा. कोरोना काल में उन्होंने साबित किया है कि धरती पर यदि कोई भगवान है तो वे डॉक्टर्स ही हैं. हालांकि इसके लिए इन डॉक्टरों को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है. लोगों की सेवा करते समय कई डॉक्टर्स ऐसे हैं, जो महीनों अपने परिवार से दूर रहे, तो कुछ ऐसे हैं जो कोरोना से मरीज को बचाते हुए खुद अपनी जान से हाथ धो बैठे. ऐसी ही एक महिला डॉक्टर हैं महाराष्ट्र की रहने वालीं प्रतीक्षा वाल्देकर.

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प्रतीक्षा वाल्देकर 7 महीने की गर्भवती होने के बावजूद दिन-रात मरीजों की सेवा करती रहीं. इस दौरान उन्हें खुद कोरोना हो गया और हालत इतनी बिगड़ गयी कि उन्हें ऑक्सीजन पर रखना पड़ा. इस दौरान उस मासूम बच्चे की भी मौत हो गयी जो उनके पेट में पल रहा था. कई दिनों तक कोरोना से जंग लड़ने के बाद आखिरकार प्रतीक्षा ने 20 सितंबर को अपनी आखिरी सांस ली. डॉक्टर प्रतीक्षा की मौत से उनके साथ काम करने वाले सभी साथियों को गहरा सदमा लगा है. आइए जानते हैं डॉ. प्रतीक्षा की सेवा और समर्पण के बारे में, जिसे निभाते हुए उनकी जान चली गयी.

गर्भावस्था में भी देती रही सेवाएं

डॉ. प्रतीक्षा वाल्देकर की उम्र केवल 32 साल थी. प्रतीक्षा एमबीबीएस एमडी थीं. पिछले कुछ सालों से ही प्रतीक्षा अमरावती के इरविन हॉस्पिटल में काम कर रही थीं. वे इस अस्पताल के पैथोलॉजी डिपार्टमेंट में काम करती थीं. भारत में जब कोरोना वायरस ने दस्तक दी थी, उसी समय वह गर्भवती हुई थीं. प्रेग्नेंट होने के बावजूद वह अस्पताल आती रहीं और लोगों की सेवा करती रहीं.

खुद हो गईं कोरोना की शिकार

साथी डॉक्टर्स ने उन्हें समझाया भी कि वे इस हालत में अस्पताल न आएं, तो स्नेहा यही कहतीं कि यदि सभी छुट्टी पर चले जाएंगे तो मरीजों की देखभाल कौन करेगा. जांच नहीं होगी तो उसकी बीमारी का पता लगाकर इलाज कैसे शुरू किया जाएगा. डॉ. प्रतीक्षा से इस तरह के जवाब सुन उनके साथी डॉक्टर चुप हो जाते थे. प्रेग्नेंसी के 7वें महीने में भी उन्होंने अस्पताल आना नहीं छोड़ा. डॉ. प्रतीक्षा पहले की तरह ही लोगों की जांच करती रहीं. इस दौरान कोरोना वायरस से वह भी संक्रमित हो गईं.

गर्भ में ही हो गई बच्चे की मौत

कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद शुरुआत में डॉ. प्रतीक्षा का इलाज इरविन अस्पताल में ही चला, लेकिन जब धीरे-धीरे हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें नागपुर के अस्पताल में ले जाया गया. उनकी हालत 10 सितंबर से ही गंभीर बनी हुई थी. डॉक्टर प्रतीक्षा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, जिसके चलते वे ऑक्सीजन पर आ गई थीं. हालांकि ऑक्सीजन लगाने का भी कोई खास फायदा नहीं हुआ. डॉ. प्रतीक्षा की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ने लगी. उनकी खराब सेहत का असर उनके बच्चे पर भी पड़ने लगा था. दिन-ब-दिन डॉक्टर प्रतीक्षा की तबियत बिगड़ते ही जा रही थी. आखिरकार 15 सितंबर को गर्भ में ही उनके बच्चे की मौत हो गयी.

डॉक्टर प्रतीक्षा ने भी तोड़ा दम

इस हादसे ने डॉक्टर प्रतीक्षा को बुरी तरह तोड़ दिया था. उनकी हालत तेजी से गिरने लगी थी. डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन फिर भी डॉक्टर प्रतीक्षा को बचा नहीं पाए. डॉक्टर प्रतीक्षा की मौत की खबर आते ही स्वास्थ्य विभाग वालों ने हंगामा मचा दिया. साथ ही इरविन अस्पताल पर भी लोगों ने अपना गुस्सा उतारा. सोशल मीडिया पर लोग डॉक्टर प्रतीक्षा की मौत के लिए अमरावती के इरविन अस्पताल को ही जिम्मेवार ठहराने लगे. इसी अस्पताल में डॉक्टर प्रतीक्षा ने गर्भावस्था के दौरान अपनी सेवाएं दी थी. नागपुर से ही डॉक्टर प्रतीक्षा ने अपनी पढ़ाई पूरी की थी.

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