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कभी रसोई घर का राजा हुआ करता था वनस्पति घी “डालडा”, लेकिन इस वजह से कारोबार हुआ खत्म

समय के साथ-साथ लोगों का लाइफस्टाइल बदलता जा रहा है, इसके साथ-साथ खानपान में भी बदलाव देखने को मिल रहे। लोग तरह-तरह की नई-नई स्वादिष्ट चीजें खाने का शौक रखते हैं। भारत में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनको खानपान में बहुत शौक है और तरह-तरह की चीजें खाना पसंद करते हैं। भारत में खानपान से संबंधित कई प्रकार के जायके मिलते हैं, जिनका स्वाद बढ़ाने का काम करते हैं। यहां पर कई प्रकार के मसाले और तेल भी उपलब्ध हैं। ज्यादातर हर चीज को बनाने के लिए वनस्पति घी का प्रयोग किया जाता है।

आप सभी लोगों को भारत का सबसे मशहूर वनस्पति घी “डालडा” तो पता ही होगा। जी हां, जिसने 90 सालों तक भारतीय किचन पर राज किया था। एक समय ऐसा था जब डालडा हर भारतीय किचन का राजा हुआ करता था। भारत में वनस्पति घी को सिर्फ डालडा के नाम से ही जाना जाता था क्योंकि इसके अलावा हमारे देश में कोई दूसरा वनस्पति घी इस्तेमाल में नहीं लाया जाता था परंतु आप लोगों में से बहुत कम लोगों को डालडा का पुराना इतिहास क्या है और इस ब्रांड की शुरुआत कैसी हुई थी, इसके बारे में जानकारी होगी।

अगर हम डालडा की शुरुआत के बारे में बताए तो इसकी शुरुआत साल 1937 में हिंदुस्तान युनिलीवर नामक कंपनी से की थी। डालडा का इतिहास आज से नहीं बल्कि आजादी से पहले का है। जी हां, डालडा ने पूरे 90 सालों तक बाजार में अपनी पकड़ बनाकर रखी और आज भी भारत में इसे डालडा के नाम से ही जाना जाता है। वर्ष 1930 में नीदरलैंड की एक कंपनी वनस्पति घी का व्यापार करने के लिए भारत में आई थी, जिसने यहां डाडा ब्रांड की शुरुआत की थी। जब डाडा में खाना बनाया जाता था तो उस दौरान अजीब सी महक आती थी क्योंकि यह एक हाइड्रोजेनेटेड वेजिटेबल ऑयल था।

भारत के अंदर जब डाडा नामक ब्रांड शुरू हुआ तो लोगों को इसका स्वाद बिल्कुल भी पसंद नहीं आया लेकिन इसी दौरान ब्रिटिश कंपनी हिंदुस्तान युनिलीवर ने नीदरलैंड की उस कंपनी के साथ हाथ मिला लिया और दोनों ने वनस्पति घी को बनाने का फैसला एक साथ कर लिया। लेकिन समस्या यहां पर खड़ी हो गई कि ब्रांड का नाम क्या रखा जाए। ऐसे में हिंदुस्तान युनिलीवर ने उस वनस्पति घी का नाम बदल दिया और डाडा से डालडा कर दिया। हिंदुस्तान युनिलीवर के द्वारा भारत में पहली बार डालडा ब्रांड को साल 1937 में लाया गया था।

जब हिंदुस्तान युनिलीवर के द्वारा इस वनस्पति घी का नाम डालडा रख दिया गया तो इसकी मार्केटिंग के तरीकों में भी बदलाव किया गया और इसकी पैकेजिंग भी बदली गई। डालडा में सबसे खासियत यह थी कि जब इसमें खाना पकाया जाता था तो किसी भी प्रकार की तेज महक नहीं आती थी, जिसकी वजह से भारतीय लोगों को यह वनस्पति घी डालडा काफी पसंद आने लगा और लोग इसकी तरफ से आकर्षित होने लग गए।

डालडा को शुद्ध देसी घी के विकल्प के रूप में हिंदुस्तान युनिलीवर के द्वारा बाजार में लाया गया था ताकि गरीब हो या मध्यम वर्ग किसी को भी इस खाद्य पदार्थ को खरीदने में परेशानी ना हो। डालडा को आकर्षक बनाने के लिए कंपनी ने विज्ञापन भी दिए और इसे मां का भरोसेमंद बताते हुए बाजार में लाया गया। मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले लोग डालडा का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करने लगे।

कंपनी के द्वारा डालडा का जो विज्ञापन लाया गया था उसके माध्यम से कंपनी ने डालडा को सेहत के लिए फायदेमंद खाद्य पदार्थ बताया और इसका स्वाद भी काफी हद तक घी से मिलता-जुलता है। धीरे-धीरे हिंदुस्तान युनिलीवर ने डालडा को भारत के हर घर तक पहुंचा दिया और लोगों को इसका स्वाद भी पसंद आया। अगर हम डालडा की कीमत की बात करें तो यह देसी घी और तेल के मुकाबले काफी कम थी, जिसके चलते गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार इसे आसानी से खरीद सकते थे।

धीरे धीरे डालडा भारत में मशहूर होता गया और यह कुकिंग ऑयल ब्रांड में नंबर एक स्थान पर आ गया लेकिन कुछ समय के पश्चात डालडा का विरोध शुरू होने लगा। अब आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिर डालडा का स्वाद लोगों को पसंद आया और लोग इसकी तरफ आकर्षित भी हुए। डालडा देसी घी और तेल के मुकाबले कीमत में कम था लेकिन फिर भी इसका विरोध क्यों हुआ तो आपको बता दें कि 1937 से भारतीय बाजारों में अपनी शुरुआत करने वाला डालडा 90 के दशक तक पूरे भारत में छा चुका था जिसके चलते अब उसके खिलाफ विरोध होने लगा।

जब डालडा को भारत के लोग ज्यादा पसंद करने लगे तो इसके व्यापार में भी तेजी आ गई, जिसकी वजह से अन्य तेल कंपनियों को नुकसान होने लगा। इसी कारण से व्यापारियों के बीच जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया और अन्य तेल कंपनियों ने भी डालडा की तरह वनस्पति घी बनाने का काम शुरू किया, जिसकी वजह से बाजार में अलग अलग ब्रांड वनस्पति घी आने लगे और डालडा का कंपटीशन बढ़ गया।

समय के साथ साथ बाजार में कई ब्रांड के वनस्पति घी आने लगे और धीरे-धीरे डालडा की मांग में कमी देखने को मिली। लोग डालडा की जगह अन्य ब्रांड के वनस्पति घी की तरफ आकर्षित होने लगे और उनका व्यापार बढ़ता चला गया। व्यापारियों और तेल कंपनियों के द्वारा डालडा को लेकर यह अफवाह फैला दी गई कि डालडा में चिकनाई बढ़ाने के लिए जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है, जिसकी वजह से डालडा का धीरे-धीरे पतन होने लगा। व्यापारियों और तेल कंपनियों के द्वारा फैलाई गई अफवाह के कारण डालडा की मांग तेजी से कम होती चली गई।

जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे भारतीय बाजारों में डालडा की चमक भी फीकी पड़ती गई और रिफाइंड ऑयल ने डालडा का स्थान ले लिया। 21वीं शताब्दी आने तक नई तेल कंपनियों के द्वारा रिफाइंड ऑयल लॉन्च किया गया जिसको डालडा के मुकाबले सेहत के लिए अधिक अच्छा बताया। इस प्रकार से डालडा को छोड़कर लोग अब रिफाइंड ऑयल के रूप में मूंगफली, सूरजमुखी, तिल और सोयाबीन से बने ऑयल का विकल्प चुनने लगे। कीमत कम होने की वजह से गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार के लोग भी इसे आसानी में खरीद सकते थे।

डालडा को रिफाइंड ऑल कंपनियों ने विज्ञापन के माध्यम से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया और यह विज्ञापन लांच किया कि डालडा खाने से दिल से संबंधित बीमारी हो जाएगी और उन्होंने विज्ञापनों के माध्यम से रिफाइंड ऑइल खाने के फायदे बताएं, जिसके चलते ग्राहक रिफाइंड ऑयल की तरफ आकर्षित होते चले गए और ज्यादा से ज्यादा ग्राहक रिफाइंड ऑयल ही खरीदने लगे।

वर्ष 2010 तक भारतीय बाजारों में 90% तक बाजारों में रिफाइंड ऑयल का व्यापार बढ़ गया था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे अन्य तरह के कुकिंग ऑयल बाजार में आने लगे, जिसके चलते रिफाइंड ऑयल का व्यापार कम होता चला गया। मौजूदा समय में भारतीय रिफाइंड तेल का इस्तेमाल ना के बराबर करते हैं।

डालडा के साथ रिफाइंड ऑयल कंपनियों ने बहुत बड़ा खेल खेला, वही खेल नई ऑयल कंपनियों ने रिफाइंड ऑयल के साथ भी खेल दिया। अब बाजार में ऐसे बहुत से नए कुकिंग ऑयल मौजूद हैं, जो इस बात का दावा करते हैं कि वह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।

तो इस प्रकार धीरे-धीरे डालडा भारतीय बाजारों से खत्म होता चला गया। मौजूदा समय में लोग अपने घरों में डालडा का प्रयोग चीजें बनाने के लिए नहीं करते लेकिन ऐसा नहीं है कि डालडा पूरी तरह से खत्म हो गया है, क्योंकि आज भी अलग-अलग प्रकार के पकवान बनाने के लिए हलवाई डालडा का ही प्रयोग करते हैं।

भारत ही नहीं बल्कि एशिया के अन्य देशों में भी डालडा की लोकप्रियता बहुत अधिक है। भले ही पिछले कुछ सालों में भारतीय बाजारों में डालडा की मांग कम हो गई परंतु पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार समेत अन्य देशों में आज भी डालडा में तरह तरह के पकवान लोग बनाते हैं। आपको बता दें कि भारत में डालडा की बिक्री बहुत सीमित हो गई थी जिसकी वजह से 90 सालों तक हिंदुस्तान युनिलीवर का एक प्रसिद्ध ब्रांड रहने के बावजूद भी वर्ष 2003 में कंपनी ने डालडा को BUNGE LIMITED कंपनी को बेच दिया।

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